Thursday, May 15, 2008

नदी

बहती नदी

हर बाँध को तोड़ देना चाहती है ।

किनारे पर लगे

पत्थरो को jahkjhor dena chayati hai .

nahi manati

yah seema kisi bhi desh ki.

nahi janati

yah bandhan kisi vishesh ka .

दो तट को मिलाकर

झूमना चायती है ।

नही देखती

रह कितनी लम्बी है यहाँ ।

नही सोचती

कठिनाईओ से भरा है जहाँ ।

yaha to sirf

sagar tak pahuchana chayati hai .

pahuchegi hi

jahan jasai bhi jana chati hai.

Wednesday, May 7, 2008

तृष्णा

एक धार बही

कभी इधर चली

कभी उधर चली

pyase मन की trishna न गई ।

dhudhle अंधेरे me देखा

suraj की roshni me dkkha

चाह मेरे मन me जो थी

न yaha मिली न vaha मिली

aakashon की उची मी

Tuesday, March 18, 2008

नियति

रेलवे स्टेशन के पीछे प्लेटफार्म पर ,

बड़े से पुल के नीचे

रहता है एक भिखारी ,

बैठा रहता है आखे मीचे ।

हाथ नही है फटे

लटक रहे तन से चिथड़े ,

हर आने -जाने वाले को

देख रहा बड़ी उम्मीद से ,

रखा कटोरा एक सामने

सिक्को की है आशा उसको

नियति

Monday, December 24, 2007

धर्म या आडम्बर

पुरी जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद कुछ विदेशी पर्यटकों जब वापस चले गए तो मंदिर के पुजारियों ने पूजा के लिए बना सारा प्रसाद दफन करवा दिया ,मंदिर को गंगाजल से पवित्र करवाया गया ।पुजारियों का तर्क था कि मंदिर मे ग़ैर हिन्दुओ का प्रवेश वर्जित है ।

क्या यही हमारी ढेर